Talesmith

Touching People's Lives By Creative Stories

कहाँ गया बचपन?

by

in

– Talesmith की कविता

ढूँढता रहता हूँ आज कल उन पलों को,
जो फिर कभी न लौटने वाली हैं।
भर तो दिया है घर को चीज़ों से,
मगर कुछ तो अब भी खाली-खाली है।

वो शरारती पैर जो सारे मोहल्ले में दौड़ा करते थे,
अब बस कुछ ही फर्शों को पहचानते हैं।
घर से ऑफिस और ऑफिस से घर,
इन्हीं रास्तों को वो जानते हैं।

कभी इन कंधों पर खड़ा एक बदमाश दोस्त,
पेड़ों से चुराया करता था कैरियाँ।
उन्हीं कंधों पर आज बैठी है,
ढेर सारी ज़िम्मेदारियाँ।

जिन्हें रास नहीं आता था मेरा चिल्लाना,
कहाँ गयी वो आवाम?
मेरी आज की ख़ामोशी से शायद,
ख़ुश हैं वो तमाम।

बस खिड़कियों से आवाज़ लगाने की देरी थी,
आ जाते थे सारे मैदान में।
नाम, शक्ल-सूरत, पता, शहर,
अब तो कुछ नहीं है ध्यान में।

भर जाती थी इन चेहरों पे रौनक,
जब गर्मी की छुट्टियाँ आ जाती थी पास।
अब तो हर महीना, हर दिन एक जैसा है,
लगता नहीं कुछ भी ख़ास।

वो नदियाँ, वो हवा, वो यार, वो किस्से,
वो गलियाँ, वो आँगन, वो मासूमियत, वो हँसी,
कोई झोली में बाँधकर ले गया यूँ।

ये अकेलापन, ये सन्नाटा, ये भाग-दौड़, ये वक्त,
ये मायूसी, ये दर्द, ये आँसू, ये ख़लिश,
बदले में देकर चला गया है क्यों?

ऐसी कविताओं के लिए Talesmith को सब्सक्राइब कीजिए।


Discover more from Talesmith

Subscribe to get the latest posts sent to your email.


3 responses to “कहाँ गया बचपन?”

  1. personspooky685ca390c7 avatar
    personspooky685ca390c7

    Excellent poem

    Rajesh proud of you

    Liked by 1 person

    1. Rajesh Muthuraj avatar

      Thank you

      Like

  2. technically39721e8137 avatar
    technically39721e8137

    superb poem👌👌

    Liked by 1 person

Leave a comment

Discover more from Talesmith

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading