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घर की मुर्गी – दाल बराबर?

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a Talesmith short by Rajesh Muthuraj


अपमान का अचार

रसोई नगर की सुबह हमेशा की तरह शांति से शुरू हुई जब तक कि किसी ने वो जानी-मानी कहावत नहीं बोल दी:
“घर की मुर्गी दाल बराबर!”

बस फिर क्या था, मुर्गी मैडम का प्रेशर कुकर फट पड़ा।
वो घमंड से अपनी पंख फड़फड़ाते हुए बोलीं,
“बस! अब तो कोर्ट का दरवाजा खटखटाऊँगी।
हर कोई मेरी तुलना दाल से कर रहा है, जो मेरी नज़र में एकदम मामूली है!”

दाल जी ने ठंडी साँस ली। “बहन, तुम समझती नहीं, ये कहावत हमारे खिलाफ़ भी नहीं है।”
“हाँ, हाँ, अब समझाने की ज़रूरत नहीं! तुमसे ही तो बराबरी की बात की गई है!”
मुर्गी बोली और अपने वकील अदरक शर्मा को फोन मिलाया।

रसोई अदालत में हंगामा

जज साहब आलू प्रसाद अपनी कुर्सी पर विराजमान थे।
कोर्टरूम खचाखच भरा था।
टमाटर रिपोर्टर बनकर नोट्स ले रहे थे,
प्याज़ रो रहे थे (जैसा हमेशा करते हैं),
हल्दी और मिर्ची गवाह के तौर पर तैयार थीं।

जज: “मामला नंबर 745 – मुर्गी बनाम दाल।
आरोप: बिना अनुमति बराबरी करना और जज़्बातों को ठेस पहुँचाना।”

मुर्गी की पेशी

मुर्गी मैडम ने अपने सुनहरे पंख सँवारे, वकील अदरक के साथ आगे बढ़ीं।
“जज साहब,” उन्होंने कहा,
“मैं वो डिश हूँ जिसके नाम से होटल में बुकिंग फुल हो जाती है।
लोग मेरी रेसिपी YouTube पर ढूंढते हैं,
और मुझे ‘घर की दाल’ से बराबर बताया जा रहा है!
यह मेरी ब्रांड वैल्यू पर हमला है!”

अदरक बोला, “माई लॉर्ड, मेरी क्लाइंट का स्वाद यूनिक है।
अगर दाल और मुर्गी बराबर हो जातीं, तो मेन्यू कार्ड में ‘चिकन दाल फ्राई’ नाम की कोई डिश नहीं होती?”

दाल की दलील

दाल जी अपनी हँसी रोकते हुए उठीं
“माई लॉर्ड, हम रोज़ाना सेवा देते हैं।
हम न शौकिया हैं, न मौसमिया, हम तो ज़रूरत हैं!
मुर्गी जी हफ़्ते में एक बार दिखती हैं,
हम तो रोज़ का खाना हैं।
तो अगर लोग हमें ‘बराबर’ कहते हैं,
तो हमें कम नहीं, बल्कि क्लासिक कहा जा रहा है!”

प्याज़ गवाह बनकर बोला, “माई लॉर्ड,
दाल के बिना कोई डिश पूरी नहीं।
मुर्गी आए तो साथ में कई बार दाल चाहिए,
दाल आए तो उसके साथ मुर्गी की याद नहीं आती!”

कोर्ट में सब हँसी से लोटपोट।
मुर्गी ने जलकर कहा, “इतना हँसोगे कि तुम्हारा छिलका भी निकल जाएगा, प्याज़ जी!”

तड़का टर्न

अचानक जज आलू ने बीच में टोका
“कोर्ट में शांति रखो!
अब दोनों पक्ष एक टेस्ट देंगे।”

टेस्ट था: ब्लाइंड टेस्टिंग प्रतियोगिता!
दोनों की डिश बनाई गई
मुर्गी मसाला” और “तड़का दाल”।
गाँव वालों को चखने के लिए बुलाया गया।

पहला व्यक्ति बोला: “मुर्गी बढ़िया है, पर थोड़ी भारी।”
दूसरा बोला: “दाल में जान है, पर बिना अचार के अधूरी।”
तीसरा बोला: “भई, दोनों मिल जाएँ तो प्लेट साफ़ हो जाए।”

जज आलू ने मुस्कुराते हुए कहा,
“तो फैसला स्पष्ट है
मुर्गी और दाल बराबर नहीं, बल्कि कंप्लीमेंट्री कॉम्बो (complementary combo) हैं!”

मुर्गी का पछतावा

मुर्गी बोली, “लगता है मैं कुछ ज़्यादा ही पक गई थी।
अब समझ आया, कहावत में अपमान नहीं, अनुभव है।”

दाल बोली, “और अब से मैं भी खुद को ‘सिंपल’ नहीं कहूँगी।
मैं भी लेजेंड हूँ!”

जज आलू बोले, “कहावत अब अपडेट की जाती है
‘घर की मुर्गी प्रीमियम दाल बराबर!’

पूरा कोर्ट ठहाकों से गूंज उठा।
प्याज़ फिर से रोने लगा “हँसते-हँसते मेरी परत उतर गई!”

रसोई न्यूज़ चैनल

टमाटर रिपोर्टर ने न्यूज़ दी
“रसोई अदालत का ऐतिहासिक फैसला:
अब से दाल और मुर्गी में कोई भेदभाव नहीं, दोनों को समान अधिकार!”

मुर्गी और दाल ने मिलकर एक नया रेस्तरां खोला —
“Equality Thal; जहाँ हर डिश की कीमत बराबर!”
स्लोगन रखा गया: “अब हर खाने में न्याय का स्वाद!”


सीख

मुर्गी और दाल के केस से हमें ये सीख मिलती है कि:

  • कभी-कभी जो सादा दिखता है, वही सबसे ज़्यादा पेट भरता है।
    चमकदार नहीं, पर भरोसेमंद।
  • घर की चीज़ की क़ीमत तब पता चलती है, जब वो छिन जाती है।
    मुर्गी ने बाहर जाकर यही सीखा: वहाँ लोग तारीफ़ नहीं, तंदूरी बना देते हैं।
  • बराबरी अपमान नहीं, संतुलन है।
    क्योंकि दाल के बिना मुर्गी अधूरी है और मुर्गी के बिना दाल का स्वाद फीका।

जज आलू का फैसला सही था
हर रसोई, हर रिश्ते, हर दिन में थोड़ा-थोड़ा दाल-सा सादापन और मुर्गी-सा रोमांच चाहिए।
ज़िंदगी में स्वाद तभी बनता है जब उसमें तड़का समझ का हो, और मसाला आदर का।

तो अगली बार कोई कहे:
“घर की मुर्गी दाल बराबर,”
तो मुस्कराकर कहना:
“और यही तो घर की खूबसूरती है!”

हर कहावत में छुपी है एक कहानी, और हम उसे हँसी के तड़के में परोसते हैं!
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4 responses to “घर की मुर्गी – दाल बराबर?”

  1. perfectlytraveler5dcfc84e96 avatar
    perfectlytraveler5dcfc84e96

    you write Hindi also very well. Like your way of story telling. It’s very unique and different.

    Liked by 1 person

    1. Rajesh Muthuraj avatar

      Thank you

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  2. Robert Sorna avatar
    Robert Sorna

    Woooooowwwww

    ek no bhai …Judge Aloo ne aaj sach mein sabziyon ki izzat badha di…

    Wah Rajesh ji, aapne kitchen ko comedy court bana diya! 😄 Kitchen mein comedy hai ya comedy kitchen hai…mast

    Liked by 2 people

  3. Ashish Gupta avatar
    Ashish Gupta

    wow bhai…

    test me maza aa gaya

    Liked by 1 person

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