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Touching People's Lives By Creative Stories

अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है

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भोंदू की अकड़

रसगुल्लापुर में भोंदू कुत्ता रहता था, मुँह में हमेशा एक टूटी चप्पल, और आत्मविश्वास पूरा फिल्मी!

वो अपनी गली का सिकंदर था।

पोस्टमैन आते ही गुर्राता, बिल्ली गुज़रती तो भौंकता, और कोई नया कुत्ता दिखे तो बोलता, “अबे हट! ये मेरी गली है, GPS से कन्फर्म कर लो!”

गली के सारे जानवर उससे डरते थे। यहाँ तक कि तोता भी ऊपर से उड़ते हुए कहता, “सावधान रहो, नीचे भोंदू है!”

भोंदू शेर की तरह चलता, पूँछ उठी हुई, कान खड़े, और दिन में तीन बार चक्कर लगाता, जैसे इलाके का मैनेजर हो।

बाहरी दुनिया की खोज

एक दिन उसने बकरी से पूछा, “क्या मेरे इलाके के बाहर भी लोग मुझे जानते हैं?”

बकरी बोली, “पता नहीं, जा के देख ले!”

भोंदू बोला, “बस यही तो मैं करने जा रहा हूँ, अब मैं अपनी गली से निकलकर दिखाऊँगा कि असली शेर मैं ही हूँ!”

अगले दिन उसने ‘गली छोड़ो यात्रा’ निकाली।

मुँह में पट्टा, गले में घंटी, और कॉन्फिडेंस में हिलता हुआ कदम।

पहली ही मोड़ पर मुँह की खाई

गली के बाहर निकलते ही हवा कुछ अलग थी।

एक बड़ा कुत्ता, टाइगर, सामने खड़ा था।

भोंदू ने सोचा, “चलो, इसे भी झुका देता हूँ।”

भोंदू बोला, “अबे ओ! तू किस गली का है?”

टाइगर बोला, “इसी गली का, और तू?”

भोंदू ने डरते-डरते भौंकने की कोशिश की:

“भौंऽऽ…”

पर आवाज़ निकली: “भूँईं…”

टाइगर हँसा, “अरे ये तो स्लो मोशन में भौंकता है!”

और इतनी ज़ोर से गरजा कि भोंदू के कानों में ब्लूटूथ डिसकनेक्टेड की आवाज़ आ गई।

भोंदू उल्टे पाँव भागा, सीधे अपनी गली में पहुँचकर चिल्लाया, “हाँ, यहीं तक अच्छा सिग्नल आता है!”

फिर से शेर बनने का रिहर्सल

अगले दिन भोंदू वापस अपने इलाके में घूम रहा था।

फिर वही अकड़, वही घमंड।

बिल्ली बोली, “क्या हुआ बाहर?”

भोंदू बोला, “वो जंगल थोड़ा बद्तमीज़ था, लोग मेरी भाषा नहीं समझे।”

तोता बोला, “तो अब क्या करोगे?”

भोंदू बोला, “अब मैं यहाँ रहकर ही मोटिवेशनल स्पीकर बनूँगा!”

उसने बोर्ड लगाया: अपनी गली का शेर बनो, भोंदू से सीखो!

लोगों की भीड़ लग गई।

भोंदू माइक पर बोला, “अपने इलाके में गर्जो, दूसरों की गली में बस वॉक करो!”

ब्रेकिंग न्यूज़

अगले दिन गाँव के अख़बार में खबर छपी: “भोंदू कुत्ते ने गली छोड़ने की कोशिश की, पर बाहर नेटवर्क नहीं मिला!”

भोंदू वायरल हो गया।

अब गाँव के बच्चे भी कहते: “आत्म-विश्वास चाहिए तो भोंदू से लो!”

कहावत का कचुम्बर:

हर किसी की “शेरगिरी” वहीं तक चलती है, जहाँ तक उसकी गली की सीमा होती है!

बाहर की दुनिया में आवाज़ नहीं, समझ काम आती है।

और याद रखो: “जहाँ लोग तुम्हें पहचानते हैं, वहाँ भौंको; जहाँ नहीं पहचानते, वहाँ धीरे से म्याऊँ करो!”

अब रसगुल्लापुर में नई कहावत चलती है: “अपनी गली में कुत्ता शेर होता है…और बाहर जाए, तो ‘साइलेंट मोड’ में।”


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