एक बार एक नई झाड़ू थी जिसे लगता था कि वह कोई मामूली झाड़ू नहीं है।
वह गर्व से कमरे के कोने में खड़ी रहती, सीना चौड़ा करके, बाल (ब्रिसल्स) फुलाकर ऐलान करती—
“मैं हूँ झाड़ूओं का शाहरुख़ ख़ान! देखो मेरी लंबी, सीधी कद-काठी! बाकी झाड़ू तो झुककर टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं, पर मैं… मैं हूँ जेंटलमैन झाड़ू, हीरो झाड़ू, सुपरस्टार झाड़ू!”
सोफ़े के नीचे धूल के गुच्छे खिलखिला उठे।
एक ने फुसफुसाया— “अरे, इसे तो कुछ पता ही नहीं… जितना ये सीधा खड़ा रहेगा, उतनी ही लंबी हमारी उम्र!”
दूसरा बोला— “जल्दी से कंफ़ेटी निकालो! आज हमारी सलामती की पार्टी है!”
बस फिर क्या था— धूल ने गुप्त पार्टी रख दी।
छींकें ही म्यूज़िक बन गईं— “अच्चूँ! अच्चूँ! अच्चूँ!” बीट पर।
कॉकरोच पुराने बिस्कुट के रैपर पर डीजे बन गए।
चींटियाँ ब्रेडक्रम्ब साइज के समोसे परोसने लगीं।
और कोने से मकड़ी स्टैंड-अप कॉमेडी करने आ धमकी।
सुबह हुई। नौकरानी गुस्से से कमरे में आई और नई झाड़ू उठा ली।
झाड़ू फूली नहीं समाई—
“वाह! आज मेरा ब्लॉकबस्टर डेब्यू है। देखना, मैं कैसे स्टाइल में सब कुछ साफ़ कर दूँगा!”
लेकिन जैसे ही नौकरानी ने उसे सोफ़े के नीचे धकेला, झाड़ू फौजी की तरह अकड़कर बोली—
“माफ़ कीजिए! मैं झुकता नहीं। मेरी गरिमा है। चाहो तो पंखा साफ़ कर लो— ऊँचाई मेरी शान है।”
धूल खिलखिला उठी।
कॉकरोच मूनवॉक करने लगे।
नौकरानी को बस छींक आई।
कमरा जस का तस गंदा रहा।
तंग आकर नौकरानी ने उस अकड़ू झाड़ू को कोने में फेंक दिया, बिल्कुल वैसे जैसे बल्लेबाज़ ज़ीरो पर आउट होकर बल्ला पटकता है।
फिर उसने पुरानी टेढ़ी-मेढ़ी झाड़ू उठाई।
यह पुरानी झाड़ू कोई स्टार नहीं थी।
उसके बाल बेतरतीब थे, डंडा खुरच-खुरच कर घिस चुका था, और चलने पर ऐसे चीं-चीं करती थी जैसे गठिया वाला बूढ़ा।
लेकिन काम शुरू करते ही, वह बड़ी अदा से झुक गई— जैसे कथक का अनुभवी डांसर।
वह सोफ़े के नीचे घुसी, अलमारी के पीछे सरकी, हर अँधेरे कोने से धूल को उखाड़ फेंका।
कॉकरोच चीखे— “मिशन रद्द! भागो साथियो!” और भागते बने।
धूल के गुच्छे कंफ़ेटी बनकर उड़ गए।
मकड़ी ने बीच जोक में माइक गिराया और नाले में कूद गई।
घर चमकने लगा। नौकरानी ने राहत की साँस ली।
उधर अकड़ू झाड़ू कोने में बैठा हीरोइन के रिजेक्टेड विलेन की तरह बड़बड़ा रहा था—
“पर… पर… मैं तो अच्छा दिखता हूँ!”
पुरानी झाड़ू हँसकर बोली—
“अरे रूप नहीं, झुकना ज़रूरी है। सफ़ाई में लचीलापन ही असली स्टाइल है। फैशन नहीं, फ़्लेक्सिबिलिटी काम आती है।”
उस दिन के बाद से अकड़ू झाड़ू भी कोशिश करने लगा झुकने की।
लेकिन हर बार कराह उठता—
“आउच! मेरे बाल! मेरी कमर! कोई बढ़ई को बुलाओ!”
सीख
हर वक्त तने-तने खड़े रहना भले ही शान की बात लगे,
लेकिन अगर सोफ़े के नीचे की धूल आप पर हँस रही है,
तो समझ लीजिए आपकी अकड़ बेकार है।
घमंड आपकी पीठ सीधी रख सकता है,
पर घर को साफ़ नहीं रख सकता।
पुराना टेढ़ा झाड़ू हमें सिखाता है कि लचक ही असली ताक़त है।
थोड़ा झुकने से आपकी इज़्ज़त कम नहीं होती,
बल्कि आपको इतनी ताक़त मिलती है कि आप
कॉकरोचों को भी भगाकर ही दम लेंगे।
ज़िंदगी में भी अगर आप हमेशा अकड़े रहेंगे—
“मैं कभी नहीं झुकूँगा” वाले मूड में—
तो परेशानियाँ, धूल के गुच्छों की तरह,
आपकी नाक के नीचे शॉपिंग मॉल खोल लेंगी।
लेकिन जैसे ही आप झुकेंगे,
वैसे ही आप उन्हें स्टाइल में बाहर फेंक देंगे।
संक्षेप में:
कभी-कभी झुकना हार मानना नहीं होता,
बल्कि बेकार की बकवास को झाड़ू मारकर बाहर करना होता है।
और मान लीजिए, दुनिया में सबसे बड़ी बेइज़्ज़ती यही है
जब धूल आपको सीधा देखकर भी वहीं जमी रहे।

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